Tuesday, April 10, 2007

कवि-परिचय

कवि-परिचय

नाम -
चेतन भारती

पिता -
श्री सुखराम सन्यासी

माता -
श्रीमती फूलबाई

जन्म -
30 मार्च 1946,स्थान-जोरातराई, जिला-धमतरी (छ.ग.)

वर्तमान -
ग्राम-मोहंदी(चण्डी), तह-अभनपुर, जिला-रायपुर (छ.ग.)

शिक्षा -
एम.ए., एस.ए.एस.(छ.ग.)

सम्पर्क -
बजरंग चौक, मठपारा, रायपुर; दूरभाष : 227450

प्रकाशित कृत्तियां-
(1) अंचरा के पीरा काव्य संग्रह 1996

(2) हरि ठाकुर अभिनंदन ग्रंथ 1997

(3) छत्तीसगढ़ी राज्य आंदोलन और हरिठाकुर 1998

(4) “ठोमहा भर घाम” काव्य संग्रह 2004

(5) कविता की एक और महानदी-2004

(6) स्वातंत्रत्योत्तर छत्तीसगढ के कवि और कविता-(प्रकाशन में)
संग्रहित -
(1) ‘प्रयास’ साहित्यिक पत्रिका, मगरलोड से निरंतर 1995से प्रकाशित।

(2) ‘बन फुलवा’

(3) “सुमनांजलि”

(4) “स्वागत नई सदी” प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, गोपालदास नीरज के साथ कविताएं प्रकाशित।

(5) आकाशवाणी रायपुर से वर्ष 1980-90 के बीच 50 से अधिक कविताएं प्रसारित।

(6) “हिन्दी की जनपदीय कविता”संपादक पं.विद्या निवास मिश्र, महात्मा गांधी अर्न्तराष्टीय हिन्दी विश्वद्यालय द्वारा तीन कविताएं संग्रहित

(7) अनेकानेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।
सम्मान -
(1) वर्ष 1999 में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण समिति,रायपुर द्वारा “वृक्ष-मित्र” एवं ‘कलमवीर’ सम्मान ।

(2) वर्ष 2000 में साहित्य परिषद देमार,धमतरी द्वारा विशेष सम्मान।

(3) 2001 में अखिल भारतीय दिव्य अलंकरण जबलपुर के अन्तर्गत लअंचरा के पारी’ पर “हिन्दी भूषण” सम्मान।

(4) वर्ष2003में संगम साहित्य समिति मगरलोड(धमतरी)द्वारा सम्मानीत
विशेष-
(1) संस्थापक सदस्य :
छत्तीसगढी साहित्य समिति पूर्व सचिव : सृजन-सम्मान छत्तीसगढ वर्तमान में कोषाध्यक्ष ।

(2) सदस्य :
हिन्दी साहित्य मण्डल।

(3) सदस्य :
सृजन साहित्य परिषद मगरलोड एवं सृजन साहित्य परिषद्, तिल्दा

सम्प्रति -
सहायक संचालक, राज्य प्रशासनिक अकादमी, छत्तीसगढ़

विचार -
पिता तुल्य “हरि ठाकुर” की प्रेरणा, सहजता, सरलता, विनम्रता ये जीवन के तीन कड़ी तथा कर्त्तव्य परायमता, उत्तरदायित्व व लगन से कार्य करना एक परम लक्ष्य।

लिखि कागज कोरे

भूमिका

“अंचरा के पीरा”(1996) के बाद ‘ठोमहा के पीरा’, चेतन भीरती के दूसर काव्य-सग्रह आय। “अंचरा के पीरा” ह युग युग ले सोसित, दमित, पीड़ित छत्तीसगढ़ महतारी के पीरा आय। ए खेतिहर देश के बीजहा धान ल तो मटिया लुका दे हावै, अब भविस्य के अंधियार आगू म पसरे हे अऊ अंचरा के पीरा ह रोज-रोज बाढ़तेच हे । सोन के कटोरा तो कब के रिता हो गय हे, सुसका भाजी अऊ पेज बासी बर चोला हर तरसत हे। खेत-खार दंदरगे हे, पांव म काँटा छवा गय हे। मनखे खोचका के मछरी कस तड़पत हे । बज्र अकाल म पेट सेप-सेप करत हे, मनखे रोटी के बोरहा म पथरा ल चाबत हे, हांक पारत पारत उंकर नरी भसियागे, फेर गरीबहा के गउ गोहार ला कोन सुनही ? कवि ए दुख अउ बिपत ले बांचे बर जनता के शक्ति के आराधन करथे उंकर विश्वास हे जँवारा के जोत कम जी भर के बरबोस त कुलुप अंधियारी कइसे नइ हटही ?

एक कती चेतन भारती ठलहा गिंजरइया संगी मन लो घर लहूटे के सलाह देथे त दूसर कती सोसक मन ल गरब झन करे के चेतौनी देथे । कवि ए दुख अउ पीरा ला दूर भगाय बर किसान मन ला “जागव जागव रे किसान” के मंत्रणा देथे । अपन धरम अउ करम ला बचाये बर पथरा कस ठोस होय के उनला प्रेरणा देथे । कवि चेतन भारती अन्याय अउ सोसन के उच्छेद बर कोरा भासन नइ देय, उन कारन के खोज करथे, अउ ओकर जरी म कुठार चलइया, सब विपत के कारण भाई-लोगन के उपेक्षा, आपस के झगरा लड़ाई आय, कवि कथे-“झगरा लड़ाई म लक्ष्मी रिसागे” ठउके बात आय तुलसी बबा भी केहे हावय-

जहां सुमति तहं सम्पत्ति नाना,
जहां कुमति तहां विपति विधाना ।

कवि चेतन भारती सुर्पनखा–महंगाई बर लक्ष्मन अउ भूख के सुरक्षा बर हनुमान के सुमिरन करथे। छत्तीसगढ़िया मन के सोसन कर्ता मन ल उंकर एक ठन सुघ्घर सीख हे –

अब नरी म डोरी झन फांसव
छानी म होरा झ भूंजव
एक्के कोरा ले सब झन आयेन
एक्के कोरा म सब ला जाना हे ।

गैर छत्तीसगढ़िया घलोक ल उन आने नइ माने, फेर हमर कोमल भाई-चारा के भावना ल ओमन कहां तक समझीन एकर बर कवि चेतावनी देत-देत ललकारे भी लगथे ।

असल म कवि चेतन भारती छत्तीसगढ़ी भासा साहित्य के मौन साधक आय, बिना हल्ला के उनतीस-पैतीस साल ले सरलग ळिखत आते हे । उन सफल आयोजक भी आय । कहूं देखा थें जादा, करथे कम । अइसन ल उन “बात के कर्रा अउ काम के पचर्रा” कथे । कहूं शांत-चित होके अपन बांटा के काम ल करत रथे ओमन ल देखाय के फुरसते नई मिले, जागेश्वर, रामेश्वर शर्मा, गौरव रेनुनाविक, सुशील वर्मा, “भोले” रसिक बिहारी अवधिया, चेतन भारती अइसने बात के कलमकार आय । कोनो भी साहित्य सम्मेलन या आन्दोलन म इनला सक्रिय देखे जा सकत हे । हंसमुख-विनम्र कवि चेतन भारती ल इहां अलग ले चिन्हे जा सकत हे । जउन भासा के अन्दरुनी ताकत लेके अत्तेक ताकतवर हो जाथे, के उंकर बात ले मान देहेच बर पर थे । विश्वेन्द्र ठाकुर के मुंहरन के चेतन भारती म हरिठाकुर जइसन संकल्प अउ नारायण लाल परमार जइसन कथन भंगिमा के दरसन होथे । ए हंसमुख चेहरा ल देखे भर म मया-पीरा के बादर उमड़े – उमड़े लगथे, ‘अंचरा के पीरा’ जइसन संकलन के सूबेच सुआगत होय हे, ये बात के साखी हमर वरिष्ठ कवि मन के ये उद्गार मन आय -

“चेतन भारती का कवि शिविर बद्धता से दूर विशुद्ध रचना धर्मिता के लिए समर्पित हे, वह कविता को फैशन नहीं बल्कि एक कलात्मक दायित्व समझता है ।”

(नारायण लाल परमार)

उनकी कविताओं के पीछे एक वैचारिक पृष्ठभूमि है, उसके पास एक निश्चित तर्क और चीजों को समझने के लिए जरुरी दृष्टि है । भारती को सामान्यजन की अपराजेय आस्था का कवि कहा जा सकता है।

( प्रो.विनोदशकर शुक्ल)

हरि ठाकुर के शब्दन म -
चेतन भारती के कविता म छत्तीसगढ़ ‘महतारी के पीरा’ हे । ये ही पीरा ह चेतन भारती के कविता बनके निकलथे। परमारजी एक ठन अऊ बात कती इशारा करे रहीन “चेतन भारती की कविताएं भविष्य में भी मनुष्य की निरीहता पतनोन्मुखता को सहन नहीं कर पायेंगी और मनुष्य के शोषन के आल-बाल हरमोला “ठोमहा भर घाम” के रचना मन मा सोरा आना व्यक्त होत देखाइ देथे, उकर चार डांड देखा-

बनाके टहलुवामोर जांगर,
मानुख पनके रुख जगायेबर ।”
लइका मन के कोंवर मन मढ़ावत,
जुवानी के फूल खिलावत।।
उछलत मतवारी मस्ती लाए बर।
देवारी के दिया अस मैं बरत हौं।।

हमर ये छत्तीसगढ़ हर अन्न-जल, जंगल अउ रत्नन सेतरी उपर ले भराय हे। का चीज नइये इहां। दू करोड़ आबादी के तीन चउथाई मनखे देहात म रइथे अउ की करोड़ मनखे के भरन-पोसन कर जियत मरत ले खेत-खार, अउ कल-कारखाना म खटत हे। कवि चेतन भारती हर जोरा तराई गांव के किसनहा बेटा आय, भले ही आज वो रायपुर के बासिंदा हो गे हे फेर उंकर आत्मा म तो गांव-गंवई के बोली अउ संस्कृति हर बसे हे। भासा के संस्कार तो उनला ठेठ-गंवई गांव सेमिले हे, एकरे कारन उंकर हिरदे म कमिया किसान कमेलिन-बनिहारिन मन बर सब ले जादा मया-पीरा हे ‘इकर उघरा तन अउ मन उज्जर’ हे। ‘कुंवारी घाम के तीपन म चुहत पछीना ले थपथपाए बदन’ म ए कवि हर धरती ल हसियात देखत, डारा पाना के पोर पोर म नवा पिका फूटत देखथे, बंगाला के चटनी अउ नानकुन अंगाकर, पेट भर पानी म संतोष करइया कमिया-किसान ह कवि के हिसाब म देख के हर मोरचा म तैनात हे इहां तक सन् 1857 के गदर घलोक म वोसामिल रहीस । खेतखार म हीनहीम वोमैदान-जंग घलोक म अपन कमाल देथा चुके हे-

“देस के खातिर मरे मिटे बर,
जम्मो के भूख मिटाय बर
तभो मय अन्न उपजात रहेव,
तभो पागा बांधे अड़े हंव”


गांधी बबा के पटुका पहनने वाला ए किसान आजो ले खावा बनके कलेचुप उघरा खड़े हे। जेठ के तफर्रा, पलपलात अंगराकस भुईंया, चउमास के गर्रा-धूरा बादर पानी, माघ पूस के करा जाड़ म ए कमिया किसान हर मनखे के चारा खातिर, आठों पहर भइसा कस खंटत हे, फेर कुकादर परलोखिया मनखे उंकर ए तियाग-तपइसा ल नई समझे पइन, उल्टा उनला गंवार समज के हिकारत ले देखथे । दिन रात खंटने वाला ए गंवइहा मन के लहू पिये म सोसक मन ला थोर को न लाज हे न झिझक हे। फिर ए क्रांति दृष्ट्रा कवि ह गंभीर समुंद के बडवानल ल देख डारे हे, वो धाम ल खुंटी म टांग के खेत-खार म खंटत हे एकर मतलब ए नहीं के लंदफंदिया मन के नार-फांस ल नई समझत हे, कवि के चतावनी है-

निच्चट पर बुधिया झन जानव,गंवई गांव अब जागत हे।
कुदारी बेंठ मे उचका के कुदाही, छाए उसनिंदा भागत है।।


आला ल जादा झन कल्लावा, नइ तो बात दुरिहा ले बिगड़ ही-

सागर सही ओ चुपचाप रहिथे
झन समझव ये उंकर कमजोरी ये
कभू बड़ोरा बनके जुरियाये आहीं
तब झन कहिहव अंगरा उंकर बोली ये

“ठोमहा भर घाम” के केन्द्रीय भाव एही चेतावनी अउ अन्याय के खिलाफ संखनाद हर आय। छत्तीसगढ़ राज बनेले कोन छत्तीसगढ़िया ल सुख नइ लागिस होहय, लेकिन जउन पर्दा के पीछू म खेल सुरु होय हे, ओंकरो बर कवि के निगाह हर एकदम तेज हे-

नवा राज म चरो मुड़ा मचे हे शोर
जम्मो कुरिया म छाही अंजोर ।
छत्तीस बरस के हुड़मा लइका
छत्तीसगढ़िया गिंजरत हे खोर खोर ।


उत्ती मुड़ा के चिमनी भभकत हे, आगी गुंगवात हे । ए बस्ती म ननजतिया मन ला अब सम्हल-सम्हल के चले बर परही, काबर इहां के जुबानी जाग चुके हे। बेरोजगारी के फोरा म तड़पत जुवानी ल उंकर सीख हे के जुवानी के पत्ता गलत झन चलव, नइतो एकर लाभ मिठलबरा मन ल मिल जाही। नवा राज के कर्ता-धर्ता मन ल कवि चेतन भारती ह एक आखर में बहुत कुछ कहि दे हावे। “देस के जीवरा खेती किसानी” अइसन डाड़ ल तो नारा बनाके विधान सभा अउ संसद भवन के बड़े दुवार म अमिट स्याही से लिख देना चाही । कवि चेतन भारती किसान के बेटा आय । वो अन्न कुंवारी के महिमाल पौराणिक प्रसंग तक ले जा थे।

हंड़िया म चटके एक ठन सीथा
आज नाचत हावे उमंग म

एहर बोही सीथा तो नोहय जेकर बर कुंवर कन्हाई जी लगाय रहीस आज जेकर ए सीथा ल मुंह म डारतेच साठ हड़िया हर खुदबुदाय लागे रहीस । ए कवि हर किसान के मान बढ़इया कवि आय, ओकर श्रम के गाथा लिखने वाला कवि आय। बस्सात जुन्ना पहिरे वोला कतका बरस बीत गइस फेर न तो ओमा दीनता के भाव झलकथे, न भय के, बल्कि अपन मेहनत बर ओला बड़ गुमान हे, वोकर स्वाभिमान के एक ठन बानगी देखा-

मोला अड़हा अढ़ निया झन मसझव
महूं कलम के धऱइयया अंव
खेत-खार मोर कागज पाथर
मेहनत के पन्ना भरइइया अंव

कवि गांव-गंवई म सोसन के जइसन कुचक्र चलत हे, ओला तो वोहर समझतेच हे, फेर अंतराष्ट्रीय समस्या घलोक कती ले वो बेखबर नइये। आतंकवादी मुसुवा अउ नक्सलवाद के फैलान उन खूबेच समझे। सोसक अउ उतियाचारी मन चेतन भारती के कविता म चेहरा बदल-बहदल के आये, कोन इहां महतारी के घर में आग लगइया मन सुखा हे, कूं ढोढ़िया लोटाहे, पर्वा म बइठइयया घुघवा, दवंधतिया, उजबक गोल्लर, नून लगिया चोरहा, अंध्यारी अंजोरी के मिलावट करइयया, धनहा के लहरा ल देख मुस्काने वाला कोकड़ा, खरही म कुंडली मारे फूंपकारने वाला सांप, ये सब प्रतीक मन नेता अफसर अउ बेपारी मन के आय । टकरहा नेतामन बर दू लकीर इहां भारी परही-

टकरहा होगे तैरि के अब
लहु के भरे-भरे संसद के तरिया में

छत्तीसगढ़ राज बनिस त ये हराम खोर मन ल पहिली से जादा मन माना लूटे के मौका मिलगे। चेतन भारती गांधीजी के चेला आय उन रक्तक्रांति म बिस्वास नइ करके अपन संगी जंवरिहा मन ल अउ मन जुरों से सजोर करथे काबर, ताकतवर ले विपत्ति ह दु हाथ घुंच के रथे। कवि चेतर भारती ह महतारी के पीरा ले गांव के चेलिक मन ल बताथे अउ राजनीति के मेकरा-जाला घलोक के रचना ल समझथे। वो खुसी म माते, करमा, डंडा के नचइया ददरिया के गवइया हुडमा चेलिक चन्दू, गंगू, दुकालू, तिहारु, हीरु, बिसरु मन ल जउन पर्दा के पाछू म होत हे तेला बटबट ले देखाथे गंवई गांव के राज म सुकुला उगाये बर देख मुसुवा अउ बिलाई के लुका झिपी ल।

कवि तोड़ फोड़ ले जादा संगी जंवरिहा के जोम म जादा बिस्वास करथे। अमीरी-गरीबी अउ दुख के कारन कवि हर हमर अशिक्षा अउ आपसी कलर-कइयया ल बताथे, अउ परिवार नियोजन, साक्षरता,सुमत, ऊंचनीच-छूआछूत के उच्छेत करे बर जोरियाथे । सहर के रहियया नौजवान मन ल भी उंकर सीख हे-

चल तो रामू थोरिक गांव चली,
छोड़ तो थौंथियावत डगर ल।
सुरता करहो तरिया के सुरुज,
तउज घुंगिया-धूर्रा के फरक ल ।।


चेतन भारती ठस व्यवस्था म बदलाव लाए बर ब्याकुल हे,धरती मे मान बढथ़ाए बर, अपने घरघुंधिया सजाए बर, नवजोत जलाए बर उन अपन संगी जंवरिहा ल अवाज लगाथे । वलनिर्माण के उन खूबेच गीत लिखे हवय उन्नत बीज, जुवानीके पत्ता, सुख के छइहां, जिन्गी के धुरी, उजरे घरघुंदिया, तरिया के पथरा उंकर सिरजन के गीत आय। उंकर आव्हान म गजब के खिंचाव हावौं दू चार डांड अउ देखा-

आवन दे रौनिया धुंधरा हटन दे
जिन्गी के कहानी नवा गढ़न दे
मत रुंधव सुनता के दुवारी ला
काली अवइया हे सुरुज तोर गांव म


एक आस्थावादी कवि हर मनखे के बेहतरी बर हरदम सोचथे । उनला प्रकृति से भी खूबेच प्रेम हे, उंकर कविता म प्रकृति के संगे-संग मनखे भी हवय । उंकर प्रकृति वरनन म छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति हर बोले गोठियाय लगथ। बसंत के एकतन सिंगार परक गीत पंक्ति देखा-

जाड़ के झरती म आगे सुग्घर महीना
झांकत हावे देख रुख म नवा पिलखी
पाके पाना हरियागे धरती के अंचरा
भोंगर्रा भुलागे छोड़ दीस जुन्ना रद्दा
चलव नाचव डंडा, जमो बनके गुवाल
तन रचव मन रचव मगन हो गाले फाग


होरी तिहारी म कवि हर जुरियाके, मुठा भर-भर के गुलाल फेंकत हे, मस्ती उल्लास उमंग म वो कभू उतारु मुंह के नई दिखै। अइसने लटालट लहरत धान के बाली “ठोमहा भर घाम”, मदरस के मगन माछी, हरर-हरर के दिन अरसी के फूंक फूंक पांव बढ़ाना, लाली लाली गुलहर के हांसी जइसन सजल बिम्ब म प्रकृति के संग नारी मन के उल्लास, कोमल भावना अउ बांझ के पीरा घलोक ल व्यक्त करे म कवि हर अपना संवेदनसीलता के परिचय देथे।

कवि चेतन भारती प्रकृति अउ मनुष्य के क्रियाकलाप ल संचालन करइयया समय के प्रति भी बड़ सचेत हे। नांगर कुटेला के उवै के पहिली जगइया, धान मिसइय्या कमिया के कड़क चोंगी के आगी ओला बड़ भाथे। कवि के कहना है के “समय निकल जाथे, बात रहि जाथे, गये समय नइ लहुटै” “समय घलोक ल बदलना जरुरी हय” एमेर कवि के काल संबंधी अवधारणा ल समझे जा सकत हे। उंकर अनुसार जिंदगी जिए बर आय, आदमी ल पेट भर खाना तन बर कपड़ा अउ रहे बर घर दुवार जरुरी हे। कवि के बिनती हे-ए धरती के मरजाद बचाय बर हमला अपने बंद मुठा ल खोलना जरुरी है । कवि ह ए संकलन म इहां के तिरथ-बरथ अउ महापुरुष घलोक मन के गौरव गान करे हे। ओहर कौसिल्या महतारी के मइके छत्तीसगढ़ के अस्मिता ल जगाय बर, अपन अस्थावादी स्वर ल अइसन सब्दन म मुखर करे हावय-

आज नीहि ते काली अंजोरी
ओस के बूंद जिये के आस हे


कवि के ए करम के सोच अउ जमीनी लड़ाई म, ए धरती के मया पीरा ल व्यक्त करे म वोकर अनगढ़ भासा हर भारी तेजधार हो गय है। ठेठ देहाती उच्चारण स्वर में भी अउ मुहावरा के तगड़ा प्रयोग से कवि चेतन भारती के भाषा हर बड़ सुखकर प्रतीति बन गय हय, मोला बिस्वास हे साहित्य रसिक मन ही नहीं छत्तीसगढ़ से प्रेम रखइयया घलोक मन ए किताब के रचनामन ला खूब चाव से बढ़ही-सुनही। भविष्य म चेतन भारती एकरो ले जादा सुग्घर कृति देवै, ए ही मोर कामना हे, भगवान से बिन्ती हे।

डॉ. बल्देव
स्टेडियम के पीछे
रायगढ़, छत्तीसगढ़

अपन बात - चेतन भारती

ये संग्रह 2001 में छपाय के उदीम होय रहिस । संग्रह के सबो कविता ल मोर साहित्यिक पिता गुरु हरि ठाकुर जी बांचे रहिन । तभे ओमन कहिन “चेतन मिहनत कस किसान मजदूर अउ भूईयाँ के जोन बात कविता म आथे ओखर स्वागत करना चाहिए । मेहा जानत हंव कविता अउ लेखन ले कोनो बड़ा भारी ताते-तात परिवर्तन नई आ जाय । तभो ले अपन जिम्मेदारी समझ के सरलग लिखते रहना चाही । तोर ए कविता मन ल पढ़के मोला आनंद आय हे जेखर बर मोर पूरा आशीर्वाद है” । ये मोर बर बड़ा दुर्भाग्य वाला बात होगे कि पूज्य हरि ठाकुर जी ल बीमारी आके घेर लिस । मोला ऊँकर सेवा करे के मौका मिलिस । जूलाई महिना ले उँकर ईलाज भोपाल में होय लागिस । उँकर 75 गीत ल अपन खर्चा ले “हँसी एक नाव सी” प्रकाशन करके 16 अगस्त 2001 में भोपाल जाके उँकर 75वाँ बरिस में प्रवेश करे के दिन सादर भेंट करेंव अउ उँकर आशीर्वाद पायेंव ।

3 दिसंबर 2001 के दिन हर मोरे च बर कास जम्मो साहित्यकार अउ छत्तीसगढ़ बर पीरा के दिन होगे, जोन दिन उँकर छइहां हमर मुड़ ले हट गे, अउ ओमन परम धाम पधार गीन । हमर बर अब्बड़ जान गाज गिरे के बात होगे । ये काव्य संग्रह “ठोमहा भर घाम” छपाए के हिम्मत नइ जुटा पावत रहेंव इही बीच हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार अउ माई समीक्षक डॉ. बलदेव ल भेट करेंव उँकर से मोला अबड़ हौसला मिलिस, मोर मन के बात ल जान के ये संग्रह बर अपन बीमार अवस्था के बावजूद प्रस्तावना लिखे के मोर ऊपर बड़ उपकार करिन । येला जिन्दगी भर नई भुला सकंव अइसे तो मोला सियान साहित्यकार आदरणीय स्व.नारायण लाल परमार जी, श्यामलाल चतुर्वेदी जी, स्व, विश्वेन्द्र ठाकुर के मया मिलिस, जोन हर मोर पूँजी आय । डॉ. विनय पाठक के सुग्घर दिसा देखई म आगू बढ़ेंव ।

किसान मजदूर गाँव के साथे साथ छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी ल पोटार के मया करइया मोर सियान बाबूजी हरि ठाकुर ले ये संग्रह “ठोमहा भर घाम” समर्पित हे ये संग्रह बर ज्यादा लिखे के जरुरत नइये तभो ले गांव गंवई में खेती खार कमइया धनहा म खटइया मनखे के दुख सुख के बात उंकर संस्कृति मंदरस कस बोली के बखान करे के प्रयास करे हौं । जम्मो साहित्यकार अउ पढ़इया संगवारी मन ल सौपत हँव । छपाय म जोन जोन के सहयोग मिलिस अउ साथ दिन उँकर मेह आभारी हंव । आपमन के पाती अऊ मया के अगोरा खाल्हे पता में रही । भाई लक्ष्मीनारायण कुम्भकार ‘सचेत’ साहित्यकार एवं कलाकार के आभारी हौं, राजकमल ल घन्यवाद हे ।

किताब तो छप गे रहीस फेर इंटरनेट मा येही किताब ला रखे बर युवा ललित निबंधकार, समीक्षक अउ जम्मो ला आघू बढोय म विस्वास करोइया भाई जयप्रकाश मानस के सुरता येही बेरा म करना मोर बर जरूरी होत है । वोह लगातार छत्तीसगढ़ राज के लेखक कवि मन के किताब मन ला दुनिया भर म बगराय बर जो अभियान के संचालन करत हे वोहर खूब मिहनत आउ ते पाय के प्रसंसा के बात बन गे हे । मंय जयप्रकाश ला ये बेरा म मन ले धन्यवाद देवत हों जाकर बिना येही किताब ह इंटरनेट म कभ्भू नइ आय सकतिस ।


0चेतन भारती
बजरंग चौक मठ पारा
रायपुर (छ.ग)

झन लगाव आगी

निच्चट परबुधिया झन जानव,
गवई-गांव अब जागत हे।
कुदारी बेंठ म उचका के कुदाही,
छाये उसनिंदा अब भागत हे।।

जांगर टोरे म बोहाथे पसीना,
जाके भुइयां तब हरियाथे
चटके पेट जब खावा बनथे,
चिरहा पटका लाज बचाथे ।।
स्वारथ ल चपके पंवरी म,
ढेलवानी रचत, करनी तोर जानत हे ।
मोर गंवई गांव...

जन –जन के पीरा हरके ओमन,
सुख के नवा फर लाये बर ठाने हे ।
जिन्गी के दर्रा म धंदाये दंदरत,
सबके छइहां बन मन बांटे हे ।।
टांग के घाम ल ओमन खुंटी में,
झांझ में उसनावत, बुता बनाये आवत हे ।
मोर गंवई गांव....

सागर सही ओ चुप-चुप रहिथे,
झन समझव उंकर कमजोरी ये ।
कभू बड़ोरा बनके जुरियाये आहीं,
तब झन कहिहव अंगरा उंकर बोली ये ।।
सेंध फोरइया, फोन पार बनइया,
देखत मने मन, ओ पहिचानत हे ।
मोर गंवई गांव...

छाती चीरे हनुमान रही ओमन,
धरती फोर के रामधन उपजावत हे ।
रावण बनके कतको गरजब,
मिहनत के अंगद बन आवत हे ।।
झन लगाव आगी ये भुइया मं,
सबो जर जाही, येला वो जानत हे ।
मोर गंवई गांव...

पर्वा म घुघुवा

पर्वा म धुधुवा
नवा राज म चारो मुड़ा मचे हे शोर,
चारो कुरिया म छाही अंजोर ।
छत्तीस बरस के हुड़मा लिका,
बिना बुता काम गिंजरत हे खोरे खोरे ।।

दर्पण घला मुंह बिचकाये,
गिजिर-गिजिर देख हांसत हे ।
हरत नइये जुवानी के दिया,
जन-जन ल ढोढ़िया मन फांसत हे ।।
फुदरत हे मुड़वा लोटा ठेकेदार बने ,
बिनता के धुंगिया फेंकत हे छानी कोत । नवा राज म....

घुमर-घुमर के खोजत रहिगेंव,
बढ़ोत्तरी कती धंधाय हे बस्ती में ।
घोंगटाहा फरिया म पहात जिन्गी,
आंसू ढारत हे गांव इंकर रस्सा कस्सी में ।।
उलट पुलट के सेंध करइया ,
बाढ़ा गीन गला-गली लतखोर । नवा राज म....

उत्ती मुड़ा म भभ कत चिमनी,
जाने काकर सपना उसनावत हे ।
पर्वा म घुघुवा बइठे करत रखवारी,
चारो कोत नक्सलवाद के आगी गुंगुवावत हे ।।
नून लगइया मौज करत हे,
कमिया ल कर दीन कोरे–कोर ।
नवा राज म...

कईसन हवा बोहावत संगी,
मानुखपन के फुन्गी पटावत हे ।
हांसत ‘फुलुवा’ के जिन्गी तरियागे,
उल्का पात उस मनखे उंडावत हे ।।
सम्हलव चलव मिहनत के बस्ती में,
जम्मो कोती जागही जुवानी पुरजोर ।
नवा राज म ....

ठोमहा भर घाम

चल ते भइया थोरिक गांव चली,
छोंड़ तो चौंधियावत डगर ल ष
सुरता कर तरिया के सुरुज,
चउल धुंगिया-धूर्रा क फरक ल ।।

हाथी उस मस्त रेंगना तो देएख,
धरती के रखवार आगू आवत हे ।
ये किसनहा उठके रोज बिहनहा,
खेती में सपना बोंये आवत हे ।।
उघरा तन, मन उज्जर, मुस्कात,
बता खपरा छानी, पक्का महल के फरक ल ।

मेकरा जाला अस छाये राजनीति म,
फंसे फाफा अस गाँव फड़फड़ावत हे ।
चलती हवा के भभकी म आके ,
ररुहा अंधियारी घला डरुवावत हेे।।
इहां कहां धंधाय हे बपुरा अंजोरी ?
‘ठोमहा भर घाम’ बर ओखर तरस ल

रुख म चटके पाना के का ठिकाना,
आज निही ते काली खाल्हे आही ।
बोकरा के गर बंधाय हे डोरी,
कतक दिन ले ओ खैर मनाही ।।
नवा राज म सुकुवा कती लुकाय हे,
करम करत देख, अपन लाल रकत ल

उन्नत के बीज

आवन दे रौनिया धुंधरा हटन दे,
जिन्गीके कहानी नवा गढ़न दे ।।

झन रुंधव सुनता के दूवारी ल ,
काली अवइया हे सुरुज ये गाँव म ।
बिनता के दाग, तनिक मेट तो सही,
हांसत बतिया ली सुम्मत के छाँव म ।।
स्कूल के रद्दा लइका ल रेंगा तो सहीं,
जम्मो टूरा-टूरी ल अक्षर पढ़न दे ।
जिन्गी के...

चुनाव में गिधवा के चाल देखले,
मारे बर झपटी झुरमुठ म सपटे हे ।
गंगान छूवत छतरी ल छोड़ देखना,
अपन कुंदरा के पटिया लचके परे हे ।।
गुड़ी के चौरा म बइठ बिचार के देख,
नवा पुरवइया बर माठ बात करन दे ।
जिन्गी के ..

भीतरौंधी कान टेंड़, सुन तो सही,
मिहनत के बांसुरी सुग्घर धुन तानत हे ।
लालच के दारु थोरिक फेंक तो सही,
धरती के मया तोरे बर उखनात है ।।
पिल्ऱी के जिन्गी बनाय सरख आगू,
कुंड़-कुंड़ म उन्नत के बीज परन दे ।
जिन्गी के ...

जुवानी के पत्ता

मोर गंवई गाँव के जुवानी,
तैंहर लिख तो नवा कहानी ।
कतक दिन ले धंधाआ रबे,
जुच्छा पर कोठी के करबे रखवारी ।।

सुव तो तिनक मरम के बात,
आसरा छोड़ तो अभ दूसरे के हाथ .
अपने ऊपर करले विश्वास,
अऊ संग ले ले संगवारी के साथ ।।

माथ ल दूसर पाँव म कतक मढ़ाबे ,
धातिया मन ल कतक फुन्गी चढ़ाबे ।
तरूवा के लकीर ल राखके गिरवी,
भाग म लिखे हे कहिके कतक ऊंघाबे ।.

मन के आगी अन्ते झन जलाव ,
जुवानी के पत्ता गलत मत चलाव ।
भूरवहा पेट तो भर नई सकय,
अब नारा के नंगारा मत बजाव।।

बीता भर पेट बर बन जाते रोटी,
उहू नइ हो पाय त झन बन गोटी ।
आँखी बर काजर नहीं, तो कचरा झन बनव ।
जिन्गी के दौड़ म, अब झोझा झन परव ।।

धो डारव अंतस के मइल ल
उठ जाग अपन भाग खुदे लिख लव ।।

मधुबन लागे खेत खार

सरग ले सुग्घर गरज के बादर,
अड़बड़ अमरित बरसा बरसे ।
मंजुर बनके मोर मन नाचे,
हरियर चद्दर तन म परगे ।।

लाख करोड़ के बात नी जानव,
मोला मिले बर अतके ।
चार पिलरवा संग जी जावन,
सबला मिले कस कसके ।।
हाँसत हावे मोर खेती खुशी में ,
धरती दाई के आँखी भरगे ।।
सरग ले सुग्घर....

हड़िया म चटके एक ठन शीथा,
आज नाचत हावय उमंग में ।
लगाके काजर सोना कमइलिन,
लचकत आवत हावय संवर के ।।
मधुबन लागे खेत खार मोर,
अब ‘राधा’ के मया पसरगे ।।
सरग ले सुग्घर...

टुकुर –टुकुर मुस्कावत हावे,
धनहा के लहरा देख कोकड़ा ह ।
उसनिंदा के रतिहा पहागे,
आज हाँसत गोठियात हावे डोकरा ह ।।
गद-गद होगे जिन्गी के कलौरी,
मरही-पोटरी के तन ह तरगे ।
सरग ले सुग्घर....

देवारी के दिया अस

देशके खातिर मरे मिटे बर,
खेती खार के भूख मिटाये बर,
तभी मय अन्न उपजात रहेंव,
अभो पागा बाँधे अड़े हौं ।।

अंग्रेजी राज भगाये बर,
गुलामी के संकरी टोरे बर
मालगुजारी के तपनी तापेंव
रौंदात रहिस तब लाज हमर,
कनिहा कुबर टुटिस हमर
तभो धनहा में कनिहा नवाये
कले चुप उघरा खड़े रहेंव
अभो रूखवा बने लगे हौं ।।

तब अब्बड़ सुग्घर लागिस
मोर इही मयारूक धरती
जेखर कोरा म बड़ीस तन मन
ओखरे च देखते हंव रतिहा ले सपना
सदा जठायेंव मिहनत के पतरी
मोर सोन उपजइया महतारी बर
छुटपन ले कर्तब में
तबो गांधी बबा के पटका पहिरेंव
अबो भुड़हुर ल पुजत जियत हौं ।।

बना के टहलुवा मोर जांग
मानुखपन के रूख लगाए बर
लइका मन के कोंवर मन टमड़त
जुवानी के अगुवानी म फूल लगावत
उच्छलत मतवारी मस्ती लाये बर
तभो मय कुदरी धरे खिरत रहेंव
अभो देवारी के दिया अस बरत हौं ।।

गंगान म बादर केगरजना
भुंइया म झमकत पानी बरसना
तन ले पसीना के बूंद चुचवावत
सब्बो म हरियर रंग चढ़ाये बर
धुंका के सिहरन ल मुंड म बाँधे
तभो मैं ठुड़गा बने खड़े रहेंव
अभो कतको पीढ़ी ले भिड़त हौं ।।
कुंवारी घाम के तीपन
पसीना म थप थपाये बदन
पी के पीका लहरावत कार
कुनकुन पानी म मिलाके चुपरत
स्वास्थ के बदौरी गड़ियावत
परमारथ के छइहां बगराये बर
तभो नच्चट निहरे अड़े रहेंव
अभो अड़े खड़े जुटे हौं ।।

पूस मांघ के करा जाड़ म
रतिहा ले कलारी धरे हाथ म
कोड़ा कोड़त भूर्री तापत
कुंदरा म लइका फुदकत
ठुठरे अंगुरी म अन्न बटोरत
तभो मय ओस सहत रहेंव
अभो महिच जुझे लड़त हौं ।।

घुरधुरहा पथरा के मस्ती
अरझाये लालच के बस्ती
करवाही अपके रस्ता रेंगत
गिरत-हकरत घिसावत पनहीं
हुंल करइया कोन इहां हे
सुध लेवइया बनखर बरगीन
ठौंका मौका अब मोर सुरता आथे
तभो मिही च भुरता बने रहेंव
अभो बने भांटा अस जरत हौं ।

सुख के छइहां

बर रूख अस ये जिन्गी म
सुख के छइहां, बगरा सकन तो अच्छा हे ।
छटकत हावे अंते बिचार हमर
सकेल के बइहां बढ़ा सकन तो अच्छा हे ।

परके गर म फांस के डोरी,
महतारी के घर म फूंक के आगी,
मनसरुवा कस तापत मिलहीं ।
सुखिया के दुखे नड्डा ल दबाके,
बने सिधवा कस हांसत मिलहीं ।
बेलने कस घिलरत जिन्गी ल ,
जम्मो मिलके उचा सकन तो अच्छा हे ।।

महंगाई अऊ भ्रष्टाचारी बनगे मितवा,
तरनी तापत हें सपटे अंधियारी में ।
आवत अंजोर ल लील डारिन,
मोर ढाई के चिमनी भभकत आँधी में ।
आज तमाशा बनगे जिन्गी
करत बर्दाश्त जी सकन तो अच्छा हे ।।

पल पलात अंगरा म राखत पाँव,
देखव तो मानुखपन उसनावत हे ।
मनखे बर मनखे बनगे बइरी,
खोर खोर इरख पन इतरावत हे।।
जिन्गी के परे खोंचका डिपरा ल
करम करत हम पाट सकन तो अच्छा हे ।

आतंकवादी मुसुवा

सुनव सुनव गणपति नहाराज,
धांध ले सवारी अपन मनसुवा नाथ के ।
उजबक परोसी ढीले हाले पोसके,
जेमन खावत हावें, देश के सुम्मत हाथ के ।

रकत म बुढ़े हावे हमर कश्मीर ह,
निकारत हावे कोरा, धर के नवा भेष में ।
बगरावत हावे नफरत के बीजहा,
धरे मारत हे कटारी हमरे देश में ।।
नेता मन चाबत हावे, गरूवा के चारा,

हिन्दुस्तान ले बचा उंकर दाँत ल उखान के।
टकराहा होगे तउंरे के अब,
लहु के भरे भरे संसद तरिया में ।
लुका जाथें दोगला मन के कुरिया में,
ओकारत हावे कोरा सुनता के भिथिया में ।।
फेंकत हे गोला बारुद होके छप्प
लेवत लेवत अपन धरम के नाव ले

दसो साल ले झेलत हन आतंकी घात,
तभी अमरिकी आँखी उघरे नइये ।
एक्के घांव के बम्ब म उड़ीस महल,
तभी हमर बर साखी करे नइये ।।
देखले समे अब आगे भगवन,
आतंकी के दांत जर ले उखान दे।।

पुन्नी के चंदा लवइया अंव

मोला अड़हा गंवइहा झन जानव,
महु कलम के धरइया अंव ।
खेत खार मोर कागज पाथर,
मिहनत के पन्ना भरइया अंव ।।

अपन कविता के सबो बानगी,
सुरता मय जुबानी रखथंव।
धनहा म सुख के बोंके बीजहा,
जिन्गी के कहानी लिखथंव ।।
पेट भरय अउ सबके बचे लाज,
अइसन तलवार भंजइया अंव ।
महु कलम के ....

अपन पसीना के बनाके सियाही,
भुइया म हरियर आखर उपकाथंव
मीठ नींद म सुग्घर सुते सबो,
अइसन पद के सुख उपजाथंव ।।
मानुखपन खिनखिलात जिये,
महुँ पुन्नी के चंदा लवइया अंव ।
महु कलम के ....

अपन भुइयाँ के रक्षा खातिर,
बीर नारायण बनके छाती ताने हंव ।
दनादन गोली चलाके बइरी ऊपर,
सुन्दर लाल, हरि के बाणी पाए हंव ।।
भारत के तिरंगा नित लहरात रहय,
अइसन नांगर म कविता लिखइया अँव ।।
महु कलम के ....

उझरे घर कुरिया

चलव अब ते सम्हलन,
महतारी के कर्जा चुकाना हे ।
अपन बांह के करके भरोसा,
नवा जिन्गी के जोत जलाना हे ।।

स्वारथ में आँखी मुंदे हम,
परमारथ ल घला चबा डारेन ।
अपनेच ल बड़का कहाए खातिर,
अपन धरम के घेंघा दबा डारेन ।।
चल तो देखव बढ़के आगू,
उझरे धर धुंधिया अपन सजाना हे ।
चलव अब तो ....

महतारी के दुनों हाथ म,
आगी लगादीन दोखहा मन ।
दसो अंगुरिया के परे फोरा म,
नुन लगादीन चोरहा मन ।।
चारो कोती अबड़ अति मचे हे,
जरत अपन घर बचाना हे ।
चलव अब तो....

अंधियारी अंजोरी के मिलवट म,
घिघियावत हावे मानुखपन ।
मुक्का बनके सब देखत हावें,
चिचियावत हावे दर्रे किसाने मन ।।
ठानव मानव अब तो जानव,
भारत महतारी के मान बढ़ाना हे ।।
चलव अब तो ....

मारव मया के गुलाल

देखो आगेस अरु फागुन तिहार,
अंजुरी भर-भर मारव मया के गुलाल ।

जाड़ के झरती आगे सुग्घर महीना,
झांकत हावे देख रूख म नवा पिका ।
पाके पाना हरियागे धरती के अंचरा ,
भोंगर्रा घला भुलागे, अपन जुन्ना रद्दा।।
चलव नाचव डंडा जमो बनके गुवाल,
तन रचव मन रचव मगन हो गाले फाग ।

तोर परघनी म बइहागे अमुवा लिमुवा,
फूल म लदागे दुल्हा कस बाग-बगीचा ।
पहाती सुकुवा के घला हरगे चेत,
मंदरस के माछी मगन हावे देख ।।
लइका अऊ पिचका जुरो सियान,
पिचकारी पितकव देवव फुहार ।

अइठत गिंजरत हावे कोन गाँव म,
कतको पिये अलसाय परे हावे छाँव म।
चिटिकुन सुख बर बेत झन सांस ल,
मछरी कस फंसे लिल झन फांस ल ।।
आगू ठाढ़े अगोरत हावे बसंत,
चोर से फेंकव गुलाल, उड़जाय मलाल ।

काली आही अंजोरी

हाँसत गोठिया ली मुम्मत के छाँव में
जिन्गी जिये के अतके आस हे ।

मुस्कात रहय तोर खोर गली,
चल तो अइसन कारज करी
छितका कुरिया सरग बरोबर,
फेर मिल बइठन कदम तरी ।।
जिन्गी के रद्दा म अब्बड़ बिच्छल हे ,
सम्हल के चलना, अतके बात हे । जिन्गी जिये के....

सिसकत खड़े हावे कोन,
गली ह काबर कल्हरत हे।
सांस म धुर्रा के राज हावे,
रस्ता ह काकर बर दंदरत हे ।।
आज नीहि ते काली आही अंजोरी,
ओस के बूंद अस जिये के आस हे ।
जिन्गी जिये के ....

मनखे ह बनाये खींचातान जिन्गी,
मनखे-मनखे बर खखाय जिन्गी।
पोटरी के हिन्मान करत मनखे ,
मानुखपन ले जुआँ म हारत मनखे ।।
गुम सुम झन जिये गाेँव के गली,
आज जिन्गी बचाय के लगे दाँव हे ।
जिन्गी जिये के ...

पीपर छांव तरी

पीपर के बिहनिया अऊ संझा,
चलव तो अइसन काज करी ।
सुरता कर गांव में उपजन बाढ़न,
सुम्मत बगरा पीपर छांव तरी ।।

अँचरा लमा के दाइ, जउन पोंछिस आंसू,
देखके तोला अपन पीरा लुकाइस ।
पहिर के जुन्हा ओहा दरद ओढ़के,
छुटपन के किलकारी तोला लुटाइस ।।
मढ़ा तो पाँव सुरता करत गाँव,
बगरा दे रद्दा भर सुख के लरी ।।

परबुधिया बने करनी करे झांझ में,
झोलावत हावे बाबू देख गंवई खोर ।
झरखपन पेलत हे स्वारथ के आंधी,
उझरत हावे सपनाये कांड़ कोरई मोर ।।
चेत करले पुरखा पहिरे हे चिरहा कुरता,
मार झन फुटानी, बांचो हे गनती करी ....

कोड़त-कोड़त कनिहा लचकगे,
उड़ाके लेगे बड़ोरा छाये छानी कुरिया ।
ढरकत हावे आंसू आके कोन पोंछे,
कोन्हा म दबके हावे पुनिया ।।
चमकत शहर छोड़ करले पुरखा के सुरता,
देख सिसकत हे महतारी, अंधियार तरी....

पीपर छांव तरी

पीपर के बिहनिया अऊ संझा,
चलव तो अइसन काज करी ।
सुरता कर गांव में उपजन बाढ़न,
सुम्मत बगरा पीपर छांव तरी ।।

अँचरा लमा के दाइ, जउन पोंछिस आंसू,
देखके तोला अपन पीरा लुकाइस ।
पहिर के जुन्हा ओहा दरद ओढ़के,
छुटपन के किलकारी तोला लुटाइस ।।
मढ़ा तो पाँव सुरता करत गाँव,
बगरा दे रद्दा भर सुख के लरी ।।

परबुधिया बने करनी करे झांझ में,
झोलावत हावे बाबू देख गंवई खोर ।
झरखपन पेलत हे स्वारथ के आंधी,
उझरत हावे सपनाये कांड़ कोरई मोर ।।
चेत करले पुरखा पहिरे हे चिरहा कुरता,
मार झन फुटानी, बांचो हे गनती करी ....

कोड़त-कोड़त कनिहा लचकगे,
उड़ाके लेगे बड़ोरा छाये छानी कुरिया ।
ढरकत हावे आंसू आके कोन पोंछे,
कोन्हा म दबके हावे पुनिया ।।
चमकत शहर छोड़ करले पुरखा के सुरता,
देख सिसकत हे महतारी, अंधियार तरी....

सुख के कुटका

अंधियारी-अंजोरी के झगरा म,
रतिहा सपनाये सपना परागे ।
गोल्लर पद पाके भूकरत हावे,
ठलहा लइका के जिन्गी लरागे।।

जुवानी के अंतस म खुसरगे हताश,
समे हा कोचकत हे लगाके अटाश ।
कतक दिन ले सियत रहय पीरा के कथरी
ओसारी म बइठे खोजत हे घाम,
पेट म रोटी के जगा हमागे पथरी।।

नंदिया के खंड़ ह मरत हे पियास,
बोहात हे संसो आगू फुदकत हे सियार ।
कहूँ संग झगरा न कहूँ संग लिगरी,
कोनो करे जिंदा कोनो दिल्लगी ।।
कलेचुप टेंवत हे पथरा म तन ला,
कुलुप अंधियार हे मानय न मन हा ।
बस्सात पटका पहिरे कतक बच्छट हीतगे,
लहरा गँवागे टोंटा सुखागे अंतस हुलगे ।

बेरोजगारी के फोरा म तड़पत जुवानी
उपेक्षा अऊ तिरस्कार के बोहात पीप
कतक दिन ले सहय, बादत हे कहानी
अऊ गुंगवाही नक्सलवाद के आगी ।

जिन्गी के धुरी

का राखे हे जिन्गानी म,
दुखः-सुख थोरिक बाँटन ।
ये इइहा के का हे ठिकाना,
जुरियाये हाँसत बेरा काटन ।।

छुटपन ले संजोये सपना,
जाने कती लुकागे अंधियार म ।
फूले के पहिली झरगे बिरवा,
डोंगा अटके परे हे मझधार म ।।
अपने जांगर चलव थका ली,
अंतस रचे घोंघट तनिक धोलन ।
का राखे हे जिन्गानी म....

जुबानी घला घिघियाये परे,
फोकटे शंका के दहरा म ।
उलट-पुलट के कतक तउरबे,
कंगलहा नरवा के लहरा म ।।
नवा उमंग के हवा चलन दे,
जुच्छा गगरा फस झन हालन ।
का राखे हे जिन्गानी म ....

पोर पोर म फूटत नवा पीका,
देखावत नवा जिन्गी के रद्दा।
दुख म बिल बिलात लइका,
छोटकन परिवार के बात हे दद्दा।।
कोन जाने जिन्गी के धुरी कब गिरही,
सुरूज के अंजोर अब पहिचानन ।
का रखे हे जिन्गानी म...

मन बदरा

मानुखपन ले बदके दुनियाँ म,
मनखे के अउ नइय़े कहूं धरम ।
एक कटे दुजे जुरत रहय,
ये भारतवासी के नइये करम ।।

कतक कतक हम चोला बदलके,
ये मानुखतन हम पायेन ।
जाने कतक सांस जुटाके,
सुग्घर धरती म जनमे आयेन ।।

बीते समे तो कभू नी बहुरे,
दुनो हाथ लिखे हे अपनभाग ।
छइहां घाम हे अँग जिन्गी के,
मन बदरा के बदलन चाल ।।

बंधाय हाथ अब खोलव तो,
मिहनत के बजालव अब करताल ।
हिम्मत-सुम्मत के चुरो के चुरेना,
जुन्ना बिचार के फेंकव भ्रमजाल ।।

सुरुज लुकाय हे बादर में

बबा कले चुप बइठे,
कनौरी के डोरी धरे अइठे
अपन चिरहा भाग ल गुनत
मने मन काली बर बुनत
गिंजर के आय हे किसनहा ।
अनमो के ओहू ल नुनछरहा ।

कथे ,का बात हे बबा,
बता तो महूं ल थोरकुन
बइटका बइठे निकरगे समे
जागीन हे लोगन, होइन कुनकुन ।

बबा कथे “सुन रे” किसनहा
बासी भइगे बात, बांचे हे बुता सरी
घुमरके पहादेय अलक रहा ।
डोंगरी कस जिन्गी,
जाने कइसे लगही पार
पानी कांजी के नइये ठिकाना
सिसकत हावे खेती खार।
कहूं जगा धूप हावे
तब कहूं जगा छांव।
कइसे निकरे रोजी रोटी
कहूं झांकत हावे लगाय बर दांव ।।
लचकत हे जिन्गी के थुन्ही,
आके कोन थामय ओला,
भरुहा घला मारत हे उदाली,
कइसन रकम के समझांव तोला ।
“झनकर बबा ये खर तैं फिकर
अभी तो संझा हे होन्दे मुन्दरहा ।
काम बुता तो होबेच करही,
मुचमुचा के कहिस किसनहा
काली तो होवेच करही बिहनहा
बबा किहिस सुनरे पुचपुचहा,
एके समे रहय नीहिं,
आज नहीं काली आवे करही रौनिया।।
आसरा छोड़े म काम नी बनय,
गुनत बइठे म रस्ता नी सरकय ।
सुरूज लुकाय हे बादर में ,
अंजोर का नी आय सावन में ।
अपन भाग के भरोसा का बइठना ,
अपने आँखी अपने बर का अइठना।
करम के धनहा म,
मरम के बीजहा ल बो ना
गियानके टेवना म टें तो मन ल,
जगा अपन भुइयाँ के भाग ल ।
अपन मिहनते के पसीना,
भूलाव झन देह म परे दाग ल ।
जानगेंव बबा मानगेंव तोला,
अंते तंते काम करेंव,
तै बने रद्दा बातये मोला ।
नी जावंव जुआँ के वो ठऊर
गांजा ल पियंव नीहि, दारू छोड़ हूँ जरूर ।
धन हे बबा मोर भाग
तोर जइसन मिलिस गियानिक ।
ठलहा गिंजरेव मेहा फोकटे,
आज मोला ये हा जियानिस ।।

मयारू भुइयाँ

मोर भुइयाँ घात मयारू हवे,
खेत खार हमर सही धाम हरे।
एक घाँव आके जऊन पाँव धरे,
ये साँधी माटी के कतको नाव रटे ।।

इहाँ करमा ददरिया सुआ पाखिन हे,
कोयली कस ‘ललिता’ के बोली हे ।
ये माटी सुन्दर बीर नारायण के,
हावे पदुम लोचन मुकुट पुरखन के ।।
इहें ‘बिप्र’ अऊ ‘भानु’ के उपजन हे,
ठाकुर हरि जस महा सिरजन हे ।

जिहाँ सियाराम के पावन दंडक दंडक बन हे,
इहें गुरू गासी बबा के बाणी गुंजनहे ए।
राजिम रतनपुर शिवरी कस धाम हवे,
पियास बुझात चित्रोत्पला गंगा महानद हे ।।
मुस्कात अरपा पैरी शिवनाथ साथ हवे,
इहां लोहा सिरमिट तो लबालब हे ।


जिहां पथरा म सोन उगात किसान हवे,
पेट जरय चाहे पीठ उकलय ।
तभो मिहनत के चिरौंजी के हे चरबन,
बड़ सिधवा इहां के रहइया हंवय ।।
ठेठरी सुरमी अइरसा पपची के लहर,
जेकर सोंध म पितर घला मेंछरावत हे ।
माता कौशिल्या के मइके कोसल अंचरा हे।

जे भुइया सीता जसमाता के आश्रम हे
इंहा बाल्मिकि अत्रि लोमस श्रृंगि के धाम हवे
जब लेव फेर जनम कभू इही अंचरा म आराम रहे
अतका पावन ये भुइयां, मोर बार-बार प्रणाम हवय

तरिया के पथरा

अगोर ले पुरवइया नवा गांव बनन दे ।
छरियाय किसनहा, के ऐसे छांव परन दे ।।

गवांगे अड़बड़ कडी फोकटे किनारी में ।
तरिया के पथरा घिसाके, परे हे बारी में ।।
फेंटाय हावे जिन्गी, ओला आगू करन दे ....

समें ल मलो लेथें अगुवा के कोचिया ।
नरवा के धार बोहागे फगुवा के लोटिया ।।
गडबडये बेवस्था, गांव म एके नियाव चलन दे ....

कउंवा के कांव-काव, चिल के झपटना ।
कोलिहा के हांव-हांव, हुंडरा के रपटना ।।
पछतात हावे रात दिन, ओमा होसला बढ़न दे....

धंधाय परे हे सांस, पर अंधियार खोली में ।
फंसाय हावे लोगन मन कर्जा बोड़ी में ।।
मुक्ताय बर हावे ,ओमा एके रंग चढ़न दे ...
घात उँच होगे अब बारी के उँधना ।
अड़बड़ बेरा होगे हांड़ी के अंधना ।।
अटके हे बाढ़न, नवा रद्दा परन दे ...

बेरा बेरा के बात

समे ह निकर जथे
जमा रहिथे बात,
कोनो गीता पद गाथे।
तब कोनो करथे घात,
येहा बेरा –बेरा के बात हे ।।

ओहू रहिस एक समें,
पर के जिन्गी खातिर ।
खुद के जीवरा मानके उधार,
अड़बड़ जोर लगाके ।।
जनता म जोश जगाके।।
अपन भुइया के आजादी बर ।
बनखर के रोटी चबावत
जंगल-जंगल घूमरत
मान बचा परान के बाजी लगात
मेंछा अंइठत
बड़े रोब दाब ले
महाराणा प्रताप कहाइस
ये ओ बेरा के बात ये

येहु बेरा के बात आय
अंते उठत घुंगिया
अंते सुलगत आगी
धरती अउ गंगान उही
पहिली के बदलगे पुरवइया
आज तो सही म राम –राज आगे
जिहां देेखो उहां एके हाव हे
समे म बदलना हे जरूरी
सबो जगा छागे बंदगी
आज के नेता जिन्गी लिये बर
खाल उतार के खुद हरियागे
बरत दिया भभका म बुतात
पर के घाव म नून लगात,
आज बढ़िया नेता कहात हे
ये हा बेरा-बेरा के बात हे ।

कोनो बनत ठेकेदार,
ओकर सगा बनत मानदार ।
कोनो खावत गरुवा के चारा,
कोनो देश के आंच खात हे।।
ये बेरा –बेरा के बात हे

जेती देखो ओती एके हाव हे ।
जनता बिचारी के खस्ता हाल हे ।.
लगाके आगी तापत हे भुरिरी
देएखत हें सतेता के खुर्सी ।
येखरे बर कतको दांव लगे हे ।
कइसनो करके दिखाथे फुर्ती ।।
ये ह बेरा-बेरा के बात हे

भइगे ओतके च आय

सुन तो रे बाबू उंघर्रा
उघार तो आंखी नवा जमाना के
अभि जिन्गी बने तमाशा हे।
परिवर्तन ह बढ़ के चिन्हा आय
बात भइगे ओतकेच आय

कतक दिन ले धंधाय रबे,
थोथना ल देय रबे धुगियां में ।
कतक दिन ले झोंकत रबे ,
आंसू चिरहा फरिया में ।।
नवा-नवा जिनिस आगे,
अलगे बाढ़े के तरिका आय ।
बात भइगे ओतकेच आय ।।

हुंकस नीही न भूंकस नीहि
बने काकरो संग गोठियास नीहि
“बात के करेरा काम के पचर्रा”
नेता मनके भरोसा गाड़ी सरके नीहि
“मीठ बोली काम जादा”
ये ही च तो गाँव के शान आय ।
बात भइगे ओतकेत आय ।।
माथा के लिखाय ल जानस नीहि।
अपन हाथ के लकीर मानस नीहि।।
केकरा कस बिलबिलावत लइका
भगवान के देय मानत रहिथस
भाग म लिखाय सानत रहिथस
मान ले रे बाबू सियान के राय
बात भइगे ओतकेच आय ।।

नान किन बात भर गाँव भर गोहार
सूजी के घात ले बताए तलवार
जांगर रमंज के ओगराय पसीना
कहूं के लिगरी कहूं के झगरा
फोकटे-फोकट सबला थाना बलाय
बात भइगे ओतकेच आय ।।

बसंत के महक

नवा बरिस के नवा बिहनिया,
फुहरे दिन सबके बेरा बहुरे ।
फुरफुर-फुरफुर चले पुरवइया,
गोंदा भूले अंगना अंगना महकेे।।

पाना झरते च झांकत पिल्खी,
जान नवा जिन्गी शोर करवइया हे ।
पिंवरा सरसो खिलखिला के हांसे,
अंचरा म नवा पोर अवइया हे ।।
भंवरा के भन्नाटी गाना गुंजत,
बगिया म ममहात आमा मउरे ।।

बनिहारिन के पसीना म नहाके ,
गहूं गरा म पुन्नी बरसत हेे।
हरियर-हरियर पहिरे लुगरा,
फुदकत मोटियारी टूरी संवरत हे ।।
खेतिहर बेटा के उमंग खातिर,
चिरई के पाखी घर घर झांके ।

गवई गाँव के भाग जगाके,
जुर मिल मिंझरा रद्दा तो बने ।
कोंवर-कोवर नान्हे पोटरी खातिर,
सकेले सांस म नानकुन बिश्वास तो जगे ।।
घाघर सही परबुधिया मत होय कोनो,
घर-घर म बसंत के महक पहुंचे ।

हरर हरर के दिन हे आगू देखे,
अरसी फूंक-भूक पांव बढ़ावत हे ।
हफर-हफर के टारत बेरा,
लाली-लाली गुलहर हांसत आवत हे ।।
आमा के छइहां म सुग्घर बइठे,
ममहात हवा बारी में फेर बहुरे ।

महतारी बर

दू दिन के जिन्गानी बही,
आ हांसत दिन बिताले।

बिछलत हे मन के अंधियारी,
छिप छिप छांव भगावत हे।
मरम के टोरी म जी लपटाए ,
गिन गिन बइहां बंधावत हेे।
झुलना झुलन मिहनत के,
चल माटी ल मीत बनाले । दू दिन के....

देवता अस तोर दरस बर,
रहि-रहि खार तोर जोहत हे ।
करनी के फर दिए खातिर,
महतारी सबो दुःख बोहत हे ।।
बाजा सही ये मानुखपन,
भुइयाँ म ताल बजा ले । दू दिन के ....

दुरभर के दिन होही दुरिहा ,
खेती के चुहकइया खोजन
पिल्खा मन के जिवरा संवारे,
खेती में मया के बीजहा बोवन ।।
ठान लन सेवा करे दाई के अब,
चल नवा रद्दा सोज बना ले । दू दिन के ....

सोसन भर

ढ़ोड़गी म पानी रहत ले
बरसा म नरवा गटागट गट
नदिया तिरे सपा-सप सब
सोसन भर दुनों झिंकत रइथे।

अटागे खेती सुखागे मेड़पार
खुशरगे आँखी होगे ठनठनपाल
ढ़ोड़गी ल नरवा नदिया खिजत रथे ।

धन रहत ले पलपलात मया
दुरिहा ल देखत मुचमुचात सगा
संग म खात पूछी हलात रथे।

देया के अंजोर म फाफामन
चुनाव के बेरा म नेतामन
झपात जोर के हाथ, हाल पूछत रथे।

खाय बर मिलत बनत हे सजन
खलास परगे कोठी झांके न एकोझन
अइसने स्वारथ म देश बाढ़त रथे।

बतर के कुंड़

होगे मंझनिया बेरा ढरकगे,
बुता बांचे हावे अबड़ अकन।
बत्तर के कुंड़ के घात अमोल,
धरती के करली झटकी जतन ।।

सुरता ले थोकन कहत हबस,
चोंगी पियत तहूं धर ले पड़की ।।
देश के जीवरा खेती किसानी,
येखरे ले भरोसा सबके बहीं ।।
कांटा खुटी सब बीन लन आगू
सुन्हर जिन्गी बर करम करन....

माता कौशिल्य के इही भूइंया म,
सीता मइया के कतक मया भरे।
माटी सनाय हे ओखर लहू म,
धरती के कोरा म कतक दया भरे।।
धात नीक लागे धनहा के चंदन
चल सबो लोगन के पीरा हरन....

सोना उगलही कमइ म तोरे,
खोलाये पेट बरोबर होही ।
होवन्दे संझ,संग करबो बियारी,
सरी लइका पिचका देखते होही ।।
नइ मिले फुरसुद, घुमे बर छोरको
बइला के संग-संग हमू चलन...

मया के भादो

मोर पहिली गबन के बीत गे,
सावन,मया के भादो आगे ।
करिया बादर घुमरत कहिथे,
अपनो तीज तिहारो आगे।।

बीते अठोरिया भइया खातिर,
महुं भेजेंव सुहर राखी ।
भाई बहिनी के गहिर परब म,
डारेंव हिरदे ले सुग्घर पाती ।।
आँखी तरसे दाई ददा बर
कतक मनायेंव मन नई माने.....

निस दिन नयना रस्ता जोहे,
निन्दा फेंकत देखंव टुकुर टुकुर ।
थोरको आवय डहर चलइया,
घर झटकुन आयेंव लुकुर लुकुर ।।
मोर मन कोंवर मइके बर तरसे
जाहूं अब तीजा लेवइया आगे....

धरती के हरियर अंचरा हर,
अब सोंध-सोंध ममहावत हे ।
चुहत पसीना मोर सजन के,
पी पाना के रंग फुर नावत हे ।
अड़बड़ सुग्धर फुले ये कासी,
लागे खेत म मोर भारत आगे....

तरिया के मछरी

अब कोन धरे गिर जावत धारन,
जर जात ल खारो सबे करि जाथें।
दुनों पार खदान हे स्वारथ के,
मझधार फंसाय सबे चले आथें ।।
कहूं संग दिये बर तोला इहां, नहीं
पतवार सम्हार खुदे करि आबे ।

गरी खेलइया मन बाढ़ीन कतको,
चले आवत लोभ के चारा गुथाए ।।
तरिया के मछरी कस अरझाए परे,
तब लिगरी के आगी कोन बुझाए ।
अंगुरी म नचावत कोन तोला।
अब जान, पागा खुद बांधि आबे ।।

पहती नरियावत कुकरा बपुरा,
चल जाग उठव कुदारी धरे आवव ।
हात गोंड़ पोटारे के परागे समे,
सुम्मत के रूख लगा चले आवव ।
बिरथा के तना तनी कर दुरिहा ,
सुर में सुर मिलावत चलि आबे ।

उठाय बिड़ा कहूं जुर मिल के,
तब पहार घला धनहा बन जाये ।
बरत रहय तोर अजम के दिया,
चुहकइया फाफा फुन्दी जर जाये ।।
करके भरोसा अपन करम के,
उठाव चतवार चलात चलि आबे।

उंचे अटारी हासत हावय

चलव उठालव जुर के बोझा
इही माटी के मरजाद बर ।

कपसा असन उजर उजर म,
परे अरझे हवय ई ।
भ्रष्टाचारी खुसरे अंतस,
देख कांपत हावय सियान
कोन मरइया, कोन बचइया
चल जम्मो के पहिचान कर, चलव उठालव...

उंचे अटारी हाँस तहावय,
मोर कुंदरा के अंधियार ले।
चोरहा आतंकी भुर्री तापत,
इहां ठुठरत हे कंदियार ह ।।
कोन फोरइया, कोन उचइया,
देख घर घर के उजियार बर, चलव उठालव....

मिलवट के खरही म बइठे,
कोन साँप बने फुफकारत हे।
गरी म फंसे मछरी कस मनखे ,
परे झोल्ली म किकियावत हेए।।
कोन मंगइया, कोन देवइया,
देख संघरा गाँव के सुखियार बर, चलव उठालव .....

धरती के गीत

सुहानी मुरलिया बाजे मोहन के
सुन सुन रधिया के मन डोले

सुन ले ओ मोर मयारू मयना
अरझाए काबर ते चलते चलत।
सुन ले गा मोर तिहारू बइहा
तहूं सुरता आये निंद परते परत
मय तो चंदा, तय मोर चंदैनी
गाबोन गीत धरती के संग होके....

धान के पाना कस कोंवर तन,
तहूं हरियाया काबर मोरे खातिर
लटालट लहसत धान के बाली,
तहूं उजियारे काबर मोरे खातिर
मय तो गरजन, मय तोर बिजली
चल जाबोन राजिम मेला बनठन के...

कतक बड़ौकी करव ओकर
जउन तोला सिरजाइस मोरे बर
कतक सहरावंव भाग ल अपन
जउन तोना भिजवाइस मोरे बर
मय तोर हिरदे, मय तोर धड़कन
गिन गिन कऊरा मलोले...

बंगाला के चटनी

लइका का जुवान
अधेर का सियान कथे
खतका करही जाड़
ये दे हाथ ठउनठुनागे।।
भइया का मितान कथे,
कहूँ ले कथरी लान,
ये दे दांत किनकिनागे....

नांगर कुटेला उवत घानी
कोन बेलन म लइठे मगन रथे।
चिरहा कनचप्पी बाँधे मुड़ म
कोन बइला संग गीत गावत रइथे ।।
लान तो गा छोकुन चोंगी पिया । ये दे नाक चुचुवागे...

कोड़े कोड़े बर कलारी संग घला
कोन सापर रहिके कमाथे बुता
कतको दंदोरे देह के पीरा
कोन जाग के उठाथे पहाती सुकुवा ।।
लान तो गा झींटी, झटकी चहा पिया । ये दे आँखी झपकियागे...

ये सोंधी माटी के उपजन बर,
कोन तन के दुख काही माने नीहि ।
सबके जीवरा उजियारे खातिर
कोन मन के सुख काहीं जाने नीहि ।
बंगाला के चटनी नानकुन अंगाकर जल्दी खवा
ये दे पेट खलखलागे...

बहु के पीरा

घानी मुंदी कस गिंजरत हावंव,
मोर जिन्गी के नइये ठिकाना।

काकर संग गोठियावंव दीदी,
अंधियारी चपके चारो मुड़ा ।
पुक अस रोज उंडत रहिथंव,
मोला बखाना के मिलथे गुड़ा ।।
कोन जनम म का करि डारेंव,
गोसइया देवत रथ मोला ताजा...

सुरूज तंदा मोर हावे गवाही,
हीरा शुद्ध हावे मोर तन मन ।
घर के पत ल कले चुप राखेंव,
बन्दवा चोखही कथे सब झन।।
कोलिहा कुकुर अस जियत हावंव,
मोर घर ले होवत हावे निकारा ...

चुरेना म चुत जियत हावंव,
चारो कोती ले मिलथे गारी ।
काकर पाला परगेंव मय हर,
भगवान काबर बनाइस नारी ।।
बेटी मान के करतीन मया तो,
घर के बाढ़न बर बनतें गारा...

जिन्गी के मजा

जर-जर के जीना ये का जीना
खिलखिल हांसत जिन्गी जीना
कोन जनी कब का हो जाही
हिल मिल करत कारज जीना

सोना चांदी शेखी बधारे
अपने अपन बगियावत हे
स्वारथ के चश्मा पहिने नेता
माटीपुत्र बने धकियावत है
माटी म सनाये बेटी के चिन्हारी
करके ढ़ोड़गी नरवा म बांध, बांध ली ना ।

तास के पत्ता कस फेंटावत जिन्गी
जनता जोकरर बने फेकावत हे
खेल खेलइया फोंकियावत हावे
किसनहा जुन्हा बने बसियावत हे
अपने खुद पहिचान बनाके
पीका-पीका बर जिन्गी जीना

अटकन सिरजन खोन बतईया,
मरहा कुकुर घला डरुवावत हे ।
झटकुन – झटकन कहुं कोती ले,
अइसन हवा इगां बेहावत हे।।
किन्नी बनके रसा चुहकदीन
दरमी दाना अस हांसत जीना

सुख के दिया बरे

हम बेटा अन धरती के,
चल ओखरे मान बढ़ाबो ।
जिहाँ परे बंजर भुइयाँ हे,
चल उहंचो छाँव लगाबो ।।

उंच नीच के भाव भगाके,
ओला जर ले इहां ले भगाबो।
छुआ-छूत और टोनही के भरम ल,
चुंदी घर के उहूं मन ल कुदाबो ।।
भाई-भाई मिल हाथ उठाये,
सबे अड़चन सहज बनाबो।

बड़े फजर ले चलव उठ के
इही भुइयां के पइंया परन।
नवा दिन के नवा अंजोरी म
मिल सुनता के छइयां धरन
घर-घर म सुख के दिया बरे
सब मिहनत के बान चलाबो।

बाढ़त हे महंगाई निस दिन
अब जीना घला दुर्भर होगे।
होगे फोकटे अबड़ खबइया
कमइया इहां बड़ दुब्बर होगे।।
पिट भर खाना, तन भर कपड़ा
अइसन घर द्वार अऊ हांड़ी बनाबो ।।

रतिहा अभी बाकी हे

दिन बिताइया तो बीतगे
रतिहा अभी तो बाकी हे

फुलुवा सरीख उल्हुर मन,
गुथलन माला बना लन प्रेम में।
दुःख-सुख समें के बादर,
चलब बांटलन जुरे नेम ले।।
फोकटे उमर गुजर झन झाए,
संग म हमर तो माटी हे......

आज नीही तो काली मितवा,
सबो जाबोन तो ओ पार।
काला गंवाके पावो काला,
काला काला धरबो साथ।।
नेतत नेतत होवत हे काली,
गिनती के स्वासा अभी बांकी हे....

मरहा मन के हाथ बेंचाना,
ये कौन अबड़ होशियारी हे।
उठब उठब अब तो चेतन,
राम भजन के मुनियादी हे।।
अइसन छेड़न राग डगर में,
अइसन छोड़न राग डगर में,
देख मुस्कान होठ में थाती हे....

चिन्हारी

जाग उठब अब होगे बिहिनिया
रतिहा ह पहागे, करले अपन चिन्हारी

बोदरा मन सब आके इहां,
हमर बीजहा भतहा उड़ादीन
कर्जा म इहां बंधाये किसनहा
ओला बोजगे भूतहा बनादीन
पेट म मुसुवा खुसर गे, तोरे आगे बारी

सुते-सुते झांकत हावस
येती रक्सा मन मारत हें उदाली
अपजाए धान के मोल खातिर
उही च मन ला देवत हें पंदोली
भूखमरी ह बढथ़ने, नइये रोजगारी

येती जिन्दगी म होवत खींचातानी
ओमन होगे लाल अउ मालामाल
अउ कतक होही हालाकीनी
ओमन मोटागे, इंकर उधरगे खाल
दुबर ल दू अखाड़ होगे करलई
उग्गे सुकुवा पहाती, आगे दूबारी