Tuesday, April 10, 2007

जिन्गी के धुरी

का राखे हे जिन्गानी म,
दुखः-सुख थोरिक बाँटन ।
ये इइहा के का हे ठिकाना,
जुरियाये हाँसत बेरा काटन ।।

छुटपन ले संजोये सपना,
जाने कती लुकागे अंधियार म ।
फूले के पहिली झरगे बिरवा,
डोंगा अटके परे हे मझधार म ।।
अपने जांगर चलव थका ली,
अंतस रचे घोंघट तनिक धोलन ।
का राखे हे जिन्गानी म....

जुबानी घला घिघियाये परे,
फोकटे शंका के दहरा म ।
उलट-पुलट के कतक तउरबे,
कंगलहा नरवा के लहरा म ।।
नवा उमंग के हवा चलन दे,
जुच्छा गगरा फस झन हालन ।
का राखे हे जिन्गानी म ....

पोर पोर म फूटत नवा पीका,
देखावत नवा जिन्गी के रद्दा।
दुख म बिल बिलात लइका,
छोटकन परिवार के बात हे दद्दा।।
कोन जाने जिन्गी के धुरी कब गिरही,
सुरूज के अंजोर अब पहिचानन ।
का रखे हे जिन्गानी म...

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