Tuesday, April 10, 2007

तरिया के पथरा

अगोर ले पुरवइया नवा गांव बनन दे ।
छरियाय किसनहा, के ऐसे छांव परन दे ।।

गवांगे अड़बड़ कडी फोकटे किनारी में ।
तरिया के पथरा घिसाके, परे हे बारी में ।।
फेंटाय हावे जिन्गी, ओला आगू करन दे ....

समें ल मलो लेथें अगुवा के कोचिया ।
नरवा के धार बोहागे फगुवा के लोटिया ।।
गडबडये बेवस्था, गांव म एके नियाव चलन दे ....

कउंवा के कांव-काव, चिल के झपटना ।
कोलिहा के हांव-हांव, हुंडरा के रपटना ।।
पछतात हावे रात दिन, ओमा होसला बढ़न दे....

धंधाय परे हे सांस, पर अंधियार खोली में ।
फंसाय हावे लोगन मन कर्जा बोड़ी में ।।
मुक्ताय बर हावे ,ओमा एके रंग चढ़न दे ...
घात उँच होगे अब बारी के उँधना ।
अड़बड़ बेरा होगे हांड़ी के अंधना ।।
अटके हे बाढ़न, नवा रद्दा परन दे ...

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