Tuesday, April 10, 2007

बहु के पीरा

घानी मुंदी कस गिंजरत हावंव,
मोर जिन्गी के नइये ठिकाना।

काकर संग गोठियावंव दीदी,
अंधियारी चपके चारो मुड़ा ।
पुक अस रोज उंडत रहिथंव,
मोला बखाना के मिलथे गुड़ा ।।
कोन जनम म का करि डारेंव,
गोसइया देवत रथ मोला ताजा...

सुरूज तंदा मोर हावे गवाही,
हीरा शुद्ध हावे मोर तन मन ।
घर के पत ल कले चुप राखेंव,
बन्दवा चोखही कथे सब झन।।
कोलिहा कुकुर अस जियत हावंव,
मोर घर ले होवत हावे निकारा ...

चुरेना म चुत जियत हावंव,
चारो कोती ले मिलथे गारी ।
काकर पाला परगेंव मय हर,
भगवान काबर बनाइस नारी ।।
बेटी मान के करतीन मया तो,
घर के बाढ़न बर बनतें गारा...

No comments: