मानुखपन ले बदके दुनियाँ म,
मनखे के अउ नइय़े कहूं धरम ।
एक कटे दुजे जुरत रहय,
ये भारतवासी के नइये करम ।।
कतक कतक हम चोला बदलके,
ये मानुखतन हम पायेन ।
जाने कतक सांस जुटाके,
सुग्घर धरती म जनमे आयेन ।।
बीते समे तो कभू नी बहुरे,
दुनो हाथ लिखे हे अपनभाग ।
छइहां घाम हे अँग जिन्गी के,
मन बदरा के बदलन चाल ।।
बंधाय हाथ अब खोलव तो,
मिहनत के बजालव अब करताल ।
हिम्मत-सुम्मत के चुरो के चुरेना,
जुन्ना बिचार के फेंकव भ्रमजाल ।।
Tuesday, April 10, 2007
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