Tuesday, April 10, 2007

मयारू भुइयाँ

मोर भुइयाँ घात मयारू हवे,
खेत खार हमर सही धाम हरे।
एक घाँव आके जऊन पाँव धरे,
ये साँधी माटी के कतको नाव रटे ।।

इहाँ करमा ददरिया सुआ पाखिन हे,
कोयली कस ‘ललिता’ के बोली हे ।
ये माटी सुन्दर बीर नारायण के,
हावे पदुम लोचन मुकुट पुरखन के ।।
इहें ‘बिप्र’ अऊ ‘भानु’ के उपजन हे,
ठाकुर हरि जस महा सिरजन हे ।

जिहाँ सियाराम के पावन दंडक दंडक बन हे,
इहें गुरू गासी बबा के बाणी गुंजनहे ए।
राजिम रतनपुर शिवरी कस धाम हवे,
पियास बुझात चित्रोत्पला गंगा महानद हे ।।
मुस्कात अरपा पैरी शिवनाथ साथ हवे,
इहां लोहा सिरमिट तो लबालब हे ।


जिहां पथरा म सोन उगात किसान हवे,
पेट जरय चाहे पीठ उकलय ।
तभो मिहनत के चिरौंजी के हे चरबन,
बड़ सिधवा इहां के रहइया हंवय ।।
ठेठरी सुरमी अइरसा पपची के लहर,
जेकर सोंध म पितर घला मेंछरावत हे ।
माता कौशिल्या के मइके कोसल अंचरा हे।

जे भुइया सीता जसमाता के आश्रम हे
इंहा बाल्मिकि अत्रि लोमस श्रृंगि के धाम हवे
जब लेव फेर जनम कभू इही अंचरा म आराम रहे
अतका पावन ये भुइयां, मोर बार-बार प्रणाम हवय

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