चलव उठालव जुर के बोझा
इही माटी के मरजाद बर ।
कपसा असन उजर उजर म,
परे अरझे हवय ई ।
भ्रष्टाचारी खुसरे अंतस,
देख कांपत हावय सियान
कोन मरइया, कोन बचइया
चल जम्मो के पहिचान कर, चलव उठालव...
उंचे अटारी हाँस तहावय,
मोर कुंदरा के अंधियार ले।
चोरहा आतंकी भुर्री तापत,
इहां ठुठरत हे कंदियार ह ।।
कोन फोरइया, कोन उचइया,
देख घर घर के उजियार बर, चलव उठालव....
मिलवट के खरही म बइठे,
कोन साँप बने फुफकारत हे।
गरी म फंसे मछरी कस मनखे ,
परे झोल्ली म किकियावत हेए।।
कोन मंगइया, कोन देवइया,
देख संघरा गाँव के सुखियार बर, चलव उठालव .....
Tuesday, April 10, 2007
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