जर-जर के जीना ये का जीना
खिलखिल हांसत जिन्गी जीना
कोन जनी कब का हो जाही
हिल मिल करत कारज जीना
सोना चांदी शेखी बधारे
अपने अपन बगियावत हे
स्वारथ के चश्मा पहिने नेता
माटीपुत्र बने धकियावत है
माटी म सनाये बेटी के चिन्हारी
करके ढ़ोड़गी नरवा म बांध, बांध ली ना ।
तास के पत्ता कस फेंटावत जिन्गी
जनता जोकरर बने फेकावत हे
खेल खेलइया फोंकियावत हावे
किसनहा जुन्हा बने बसियावत हे
अपने खुद पहिचान बनाके
पीका-पीका बर जिन्गी जीना
अटकन सिरजन खोन बतईया,
मरहा कुकुर घला डरुवावत हे ।
झटकुन – झटकन कहुं कोती ले,
अइसन हवा इगां बेहावत हे।।
किन्नी बनके रसा चुहकदीन
दरमी दाना अस हांसत जीना
Tuesday, April 10, 2007
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