Tuesday, April 10, 2007

रतिहा अभी बाकी हे

दिन बिताइया तो बीतगे
रतिहा अभी तो बाकी हे

फुलुवा सरीख उल्हुर मन,
गुथलन माला बना लन प्रेम में।
दुःख-सुख समें के बादर,
चलब बांटलन जुरे नेम ले।।
फोकटे उमर गुजर झन झाए,
संग म हमर तो माटी हे......

आज नीही तो काली मितवा,
सबो जाबोन तो ओ पार।
काला गंवाके पावो काला,
काला काला धरबो साथ।।
नेतत नेतत होवत हे काली,
गिनती के स्वासा अभी बांकी हे....

मरहा मन के हाथ बेंचाना,
ये कौन अबड़ होशियारी हे।
उठब उठब अब तो चेतन,
राम भजन के मुनियादी हे।।
अइसन छेड़न राग डगर में,
अइसन छोड़न राग डगर में,
देख मुस्कान होठ में थाती हे....

No comments: