Tuesday, April 10, 2007

बसंत के महक

नवा बरिस के नवा बिहनिया,
फुहरे दिन सबके बेरा बहुरे ।
फुरफुर-फुरफुर चले पुरवइया,
गोंदा भूले अंगना अंगना महकेे।।

पाना झरते च झांकत पिल्खी,
जान नवा जिन्गी शोर करवइया हे ।
पिंवरा सरसो खिलखिला के हांसे,
अंचरा म नवा पोर अवइया हे ।।
भंवरा के भन्नाटी गाना गुंजत,
बगिया म ममहात आमा मउरे ।।

बनिहारिन के पसीना म नहाके ,
गहूं गरा म पुन्नी बरसत हेे।
हरियर-हरियर पहिरे लुगरा,
फुदकत मोटियारी टूरी संवरत हे ।।
खेतिहर बेटा के उमंग खातिर,
चिरई के पाखी घर घर झांके ।

गवई गाँव के भाग जगाके,
जुर मिल मिंझरा रद्दा तो बने ।
कोंवर-कोवर नान्हे पोटरी खातिर,
सकेले सांस म नानकुन बिश्वास तो जगे ।।
घाघर सही परबुधिया मत होय कोनो,
घर-घर म बसंत के महक पहुंचे ।

हरर हरर के दिन हे आगू देखे,
अरसी फूंक-भूक पांव बढ़ावत हे ।
हफर-हफर के टारत बेरा,
लाली-लाली गुलहर हांसत आवत हे ।।
आमा के छइहां म सुग्घर बइठे,
ममहात हवा बारी में फेर बहुरे ।

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