Tuesday, April 10, 2007

मया के भादो

मोर पहिली गबन के बीत गे,
सावन,मया के भादो आगे ।
करिया बादर घुमरत कहिथे,
अपनो तीज तिहारो आगे।।

बीते अठोरिया भइया खातिर,
महुं भेजेंव सुहर राखी ।
भाई बहिनी के गहिर परब म,
डारेंव हिरदे ले सुग्घर पाती ।।
आँखी तरसे दाई ददा बर
कतक मनायेंव मन नई माने.....

निस दिन नयना रस्ता जोहे,
निन्दा फेंकत देखंव टुकुर टुकुर ।
थोरको आवय डहर चलइया,
घर झटकुन आयेंव लुकुर लुकुर ।।
मोर मन कोंवर मइके बर तरसे
जाहूं अब तीजा लेवइया आगे....

धरती के हरियर अंचरा हर,
अब सोंध-सोंध ममहावत हे ।
चुहत पसीना मोर सजन के,
पी पाना के रंग फुर नावत हे ।
अड़बड़ सुग्धर फुले ये कासी,
लागे खेत म मोर भारत आगे....

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