Tuesday, April 10, 2007

आतंकवादी मुसुवा

सुनव सुनव गणपति नहाराज,
धांध ले सवारी अपन मनसुवा नाथ के ।
उजबक परोसी ढीले हाले पोसके,
जेमन खावत हावें, देश के सुम्मत हाथ के ।

रकत म बुढ़े हावे हमर कश्मीर ह,
निकारत हावे कोरा, धर के नवा भेष में ।
बगरावत हावे नफरत के बीजहा,
धरे मारत हे कटारी हमरे देश में ।।
नेता मन चाबत हावे, गरूवा के चारा,

हिन्दुस्तान ले बचा उंकर दाँत ल उखान के।
टकराहा होगे तउंरे के अब,
लहु के भरे भरे संसद तरिया में ।
लुका जाथें दोगला मन के कुरिया में,
ओकारत हावे कोरा सुनता के भिथिया में ।।
फेंकत हे गोला बारुद होके छप्प
लेवत लेवत अपन धरम के नाव ले

दसो साल ले झेलत हन आतंकी घात,
तभी अमरिकी आँखी उघरे नइये ।
एक्के घांव के बम्ब म उड़ीस महल,
तभी हमर बर साखी करे नइये ।।
देखले समे अब आगे भगवन,
आतंकी के दांत जर ले उखान दे।।

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