समे ह निकर जथे
जमा रहिथे बात,
कोनो गीता पद गाथे।
तब कोनो करथे घात,
येहा बेरा –बेरा के बात हे ।।
ओहू रहिस एक समें,
पर के जिन्गी खातिर ।
खुद के जीवरा मानके उधार,
अड़बड़ जोर लगाके ।।
जनता म जोश जगाके।।
अपन भुइया के आजादी बर ।
बनखर के रोटी चबावत
जंगल-जंगल घूमरत
मान बचा परान के बाजी लगात
मेंछा अंइठत
बड़े रोब दाब ले
महाराणा प्रताप कहाइस
ये ओ बेरा के बात ये
येहु बेरा के बात आय
अंते उठत घुंगिया
अंते सुलगत आगी
धरती अउ गंगान उही
पहिली के बदलगे पुरवइया
आज तो सही म राम –राज आगे
जिहां देेखो उहां एके हाव हे
समे म बदलना हे जरूरी
सबो जगा छागे बंदगी
आज के नेता जिन्गी लिये बर
खाल उतार के खुद हरियागे
बरत दिया भभका म बुतात
पर के घाव म नून लगात,
आज बढ़िया नेता कहात हे
ये हा बेरा-बेरा के बात हे ।
कोनो बनत ठेकेदार,
ओकर सगा बनत मानदार ।
कोनो खावत गरुवा के चारा,
कोनो देश के आंच खात हे।।
ये बेरा –बेरा के बात हे
जेती देखो ओती एके हाव हे ।
जनता बिचारी के खस्ता हाल हे ।.
लगाके आगी तापत हे भुरिरी
देएखत हें सतेता के खुर्सी ।
येखरे बर कतको दांव लगे हे ।
कइसनो करके दिखाथे फुर्ती ।।
ये ह बेरा-बेरा के बात हे
Tuesday, April 10, 2007
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