Tuesday, April 10, 2007

पुन्नी के चंदा लवइया अंव

मोला अड़हा गंवइहा झन जानव,
महु कलम के धरइया अंव ।
खेत खार मोर कागज पाथर,
मिहनत के पन्ना भरइया अंव ।।

अपन कविता के सबो बानगी,
सुरता मय जुबानी रखथंव।
धनहा म सुख के बोंके बीजहा,
जिन्गी के कहानी लिखथंव ।।
पेट भरय अउ सबके बचे लाज,
अइसन तलवार भंजइया अंव ।
महु कलम के ....

अपन पसीना के बनाके सियाही,
भुइया म हरियर आखर उपकाथंव
मीठ नींद म सुग्घर सुते सबो,
अइसन पद के सुख उपजाथंव ।।
मानुखपन खिनखिलात जिये,
महुँ पुन्नी के चंदा लवइया अंव ।
महु कलम के ....

अपन भुइयाँ के रक्षा खातिर,
बीर नारायण बनके छाती ताने हंव ।
दनादन गोली चलाके बइरी ऊपर,
सुन्दर लाल, हरि के बाणी पाए हंव ।।
भारत के तिरंगा नित लहरात रहय,
अइसन नांगर म कविता लिखइया अँव ।।
महु कलम के ....

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