Tuesday, April 10, 2007

देवारी के दिया अस

देशके खातिर मरे मिटे बर,
खेती खार के भूख मिटाये बर,
तभी मय अन्न उपजात रहेंव,
अभो पागा बाँधे अड़े हौं ।।

अंग्रेजी राज भगाये बर,
गुलामी के संकरी टोरे बर
मालगुजारी के तपनी तापेंव
रौंदात रहिस तब लाज हमर,
कनिहा कुबर टुटिस हमर
तभो धनहा में कनिहा नवाये
कले चुप उघरा खड़े रहेंव
अभो रूखवा बने लगे हौं ।।

तब अब्बड़ सुग्घर लागिस
मोर इही मयारूक धरती
जेखर कोरा म बड़ीस तन मन
ओखरे च देखते हंव रतिहा ले सपना
सदा जठायेंव मिहनत के पतरी
मोर सोन उपजइया महतारी बर
छुटपन ले कर्तब में
तबो गांधी बबा के पटका पहिरेंव
अबो भुड़हुर ल पुजत जियत हौं ।।

बना के टहलुवा मोर जांग
मानुखपन के रूख लगाए बर
लइका मन के कोंवर मन टमड़त
जुवानी के अगुवानी म फूल लगावत
उच्छलत मतवारी मस्ती लाये बर
तभो मय कुदरी धरे खिरत रहेंव
अभो देवारी के दिया अस बरत हौं ।।

गंगान म बादर केगरजना
भुंइया म झमकत पानी बरसना
तन ले पसीना के बूंद चुचवावत
सब्बो म हरियर रंग चढ़ाये बर
धुंका के सिहरन ल मुंड म बाँधे
तभो मैं ठुड़गा बने खड़े रहेंव
अभो कतको पीढ़ी ले भिड़त हौं ।।
कुंवारी घाम के तीपन
पसीना म थप थपाये बदन
पी के पीका लहरावत कार
कुनकुन पानी म मिलाके चुपरत
स्वास्थ के बदौरी गड़ियावत
परमारथ के छइहां बगराये बर
तभो नच्चट निहरे अड़े रहेंव
अभो अड़े खड़े जुटे हौं ।।

पूस मांघ के करा जाड़ म
रतिहा ले कलारी धरे हाथ म
कोड़ा कोड़त भूर्री तापत
कुंदरा म लइका फुदकत
ठुठरे अंगुरी म अन्न बटोरत
तभो मय ओस सहत रहेंव
अभो महिच जुझे लड़त हौं ।।

घुरधुरहा पथरा के मस्ती
अरझाये लालच के बस्ती
करवाही अपके रस्ता रेंगत
गिरत-हकरत घिसावत पनहीं
हुंल करइया कोन इहां हे
सुध लेवइया बनखर बरगीन
ठौंका मौका अब मोर सुरता आथे
तभो मिही च भुरता बने रहेंव
अभो बने भांटा अस जरत हौं ।

No comments: