Tuesday, April 10, 2007

सुरुज लुकाय हे बादर में

बबा कले चुप बइठे,
कनौरी के डोरी धरे अइठे
अपन चिरहा भाग ल गुनत
मने मन काली बर बुनत
गिंजर के आय हे किसनहा ।
अनमो के ओहू ल नुनछरहा ।

कथे ,का बात हे बबा,
बता तो महूं ल थोरकुन
बइटका बइठे निकरगे समे
जागीन हे लोगन, होइन कुनकुन ।

बबा कथे “सुन रे” किसनहा
बासी भइगे बात, बांचे हे बुता सरी
घुमरके पहादेय अलक रहा ।
डोंगरी कस जिन्गी,
जाने कइसे लगही पार
पानी कांजी के नइये ठिकाना
सिसकत हावे खेती खार।
कहूं जगा धूप हावे
तब कहूं जगा छांव।
कइसे निकरे रोजी रोटी
कहूं झांकत हावे लगाय बर दांव ।।
लचकत हे जिन्गी के थुन्ही,
आके कोन थामय ओला,
भरुहा घला मारत हे उदाली,
कइसन रकम के समझांव तोला ।
“झनकर बबा ये खर तैं फिकर
अभी तो संझा हे होन्दे मुन्दरहा ।
काम बुता तो होबेच करही,
मुचमुचा के कहिस किसनहा
काली तो होवेच करही बिहनहा
बबा किहिस सुनरे पुचपुचहा,
एके समे रहय नीहिं,
आज नहीं काली आवे करही रौनिया।।
आसरा छोड़े म काम नी बनय,
गुनत बइठे म रस्ता नी सरकय ।
सुरूज लुकाय हे बादर में ,
अंजोर का नी आय सावन में ।
अपन भाग के भरोसा का बइठना ,
अपने आँखी अपने बर का अइठना।
करम के धनहा म,
मरम के बीजहा ल बो ना
गियानके टेवना म टें तो मन ल,
जगा अपन भुइयाँ के भाग ल ।
अपन मिहनते के पसीना,
भूलाव झन देह म परे दाग ल ।
जानगेंव बबा मानगेंव तोला,
अंते तंते काम करेंव,
तै बने रद्दा बातये मोला ।
नी जावंव जुआँ के वो ठऊर
गांजा ल पियंव नीहि, दारू छोड़ हूँ जरूर ।
धन हे बबा मोर भाग
तोर जइसन मिलिस गियानिक ।
ठलहा गिंजरेव मेहा फोकटे,
आज मोला ये हा जियानिस ।।

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