Tuesday, April 10, 2007

भइगे ओतके च आय

सुन तो रे बाबू उंघर्रा
उघार तो आंखी नवा जमाना के
अभि जिन्गी बने तमाशा हे।
परिवर्तन ह बढ़ के चिन्हा आय
बात भइगे ओतकेच आय

कतक दिन ले धंधाय रबे,
थोथना ल देय रबे धुगियां में ।
कतक दिन ले झोंकत रबे ,
आंसू चिरहा फरिया में ।।
नवा-नवा जिनिस आगे,
अलगे बाढ़े के तरिका आय ।
बात भइगे ओतकेच आय ।।

हुंकस नीही न भूंकस नीहि
बने काकरो संग गोठियास नीहि
“बात के करेरा काम के पचर्रा”
नेता मनके भरोसा गाड़ी सरके नीहि
“मीठ बोली काम जादा”
ये ही च तो गाँव के शान आय ।
बात भइगे ओतकेत आय ।।
माथा के लिखाय ल जानस नीहि।
अपन हाथ के लकीर मानस नीहि।।
केकरा कस बिलबिलावत लइका
भगवान के देय मानत रहिथस
भाग म लिखाय सानत रहिथस
मान ले रे बाबू सियान के राय
बात भइगे ओतकेच आय ।।

नान किन बात भर गाँव भर गोहार
सूजी के घात ले बताए तलवार
जांगर रमंज के ओगराय पसीना
कहूं के लिगरी कहूं के झगरा
फोकटे-फोकट सबला थाना बलाय
बात भइगे ओतकेच आय ।।

No comments: