लइका का जुवान
अधेर का सियान कथे
खतका करही जाड़
ये दे हाथ ठउनठुनागे।।
भइया का मितान कथे,
कहूँ ले कथरी लान,
ये दे दांत किनकिनागे....
नांगर कुटेला उवत घानी
कोन बेलन म लइठे मगन रथे।
चिरहा कनचप्पी बाँधे मुड़ म
कोन बइला संग गीत गावत रइथे ।।
लान तो गा छोकुन चोंगी पिया । ये दे नाक चुचुवागे...
कोड़े कोड़े बर कलारी संग घला
कोन सापर रहिके कमाथे बुता
कतको दंदोरे देह के पीरा
कोन जाग के उठाथे पहाती सुकुवा ।।
लान तो गा झींटी, झटकी चहा पिया । ये दे आँखी झपकियागे...
ये सोंधी माटी के उपजन बर,
कोन तन के दुख काही माने नीहि ।
सबके जीवरा उजियारे खातिर
कोन मन के सुख काहीं जाने नीहि ।
बंगाला के चटनी नानकुन अंगाकर जल्दी खवा
ये दे पेट खलखलागे...
Tuesday, April 10, 2007
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