हम बेटा अन धरती के,
चल ओखरे मान बढ़ाबो ।
जिहाँ परे बंजर भुइयाँ हे,
चल उहंचो छाँव लगाबो ।।
उंच नीच के भाव भगाके,
ओला जर ले इहां ले भगाबो।
छुआ-छूत और टोनही के भरम ल,
चुंदी घर के उहूं मन ल कुदाबो ।।
भाई-भाई मिल हाथ उठाये,
सबे अड़चन सहज बनाबो।
बड़े फजर ले चलव उठ के
इही भुइयां के पइंया परन।
नवा दिन के नवा अंजोरी म
मिल सुनता के छइयां धरन
घर-घर म सुख के दिया बरे
सब मिहनत के बान चलाबो।
बाढ़त हे महंगाई निस दिन
अब जीना घला दुर्भर होगे।
होगे फोकटे अबड़ खबइया
कमइया इहां बड़ दुब्बर होगे।।
पिट भर खाना, तन भर कपड़ा
अइसन घर द्वार अऊ हांड़ी बनाबो ।।
Tuesday, April 10, 2007
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